भगवान कृष्ण की हंसी में गहरी अर्थ और रहस्य छिपे हैं। इस लेख में जानें कैसे उनकी हंसी जीवन में आनंद और शांति लाती है।
वह एक अद्वितीय क्षण था, जब भगवान कृष्ण ने युद्धभूमि में अर्जुन के समक्ष अपनी हंसी से एक गहरा संदेश प्रकट किया। यह कहानी हमें उस समय की ओर ले जाती है, जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में युद्ध की ध्वनि गूंज रही थी और मानवता के इतिहास में एक नए अध्याय की शुरुआत हो रही थी। इस कहानी में हम जानेंगे कि भगवान कृष्ण ने क्यों और कैसे अर्जुन को अपनी हंसी से प्रेरित किया।
तमुवाच हृषीकेशः प्रहसन्निव भारत
हे भरतवंशी (धृतराष्ट्र)! उस समय दोनों सेनाओं के मध्य शोकमग्न अर्जुन से कृष्ण ने मानो हँसते हुए ये शब्द कहे |
सेन्योरुभ्योर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः || १० ||
कुरुक्षेत्र की रणभूमि में दो सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं। कौरवों और पांडवों के बीच का यह युद्ध सिर्फ एक राज्य की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह धर्म और अधर्म के बीच की लड़ाई थी। युद्ध के आरंभिक क्षणों में, अर्जुन ने अपने परिजनों को अपने विरोधी दल में खड़ा देखा और उनके मन में एक गहरी उदासी और शंका उत्पन्न हो गई। उन्हें यह सोचकर विषाद हो गया कि इस युद्ध में विजय प्राप्त कर भी क्या वह वास्तव में खुश रह पाएंगे।
अर्जुन की दुविधा ने उन्हें युद्ध से विमुख कर दिया। उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा कि वह युद्ध नहीं करेंगे। अर्जुन के मन में युद्ध की निरर्थकता का भाव उमड़ रहा था। उन्होंने कृष्ण से ज्ञान की याचना की, लेकिन बिना कुछ कहे ही उन्होंने अपना निर्णय सुना दिया कि वह युद्ध नहीं करेंगे। यह देखकर भगवान कृष्ण मुस्कुरा उठे।
कथारूप (तत्व को समझने के दृष्टिकोण से)
कुरुक्षेत्र के मैदान में दो सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं। एक ओर पांडवों की सेना थी और दूसरी ओर कौरवों की। दोनों पक्षों के बीच में भगवान कृष्ण और अर्जुन का रथ खड़ा था। अर्जुन, जो कि पांडवों के महान योद्धा थे, अपने ही परिजनों के खिलाफ युद्ध करने के लिए तैयार नहीं थे। उनके मन में अनेक शंकाएँ और द्वंद्व चल रहे थे, और वे गहरे विषाद में डूबे हुए थे।
अर्जुन ने अपने धनुष को नीचे रख दिया और भगवान कृष्ण से कहा, "हे माधव, मैं युद्ध नहीं कर सकता। मेरे अपने लोग, मेरे प्रियजन इस युद्ध में सम्मिलित हैं। मैं उनके खिलाफ कैसे हथियार उठा सकता हूँ?" अर्जुन की आँखों में आँसू थे, और उनकी आवाज में गहरा दर्द था।
भगवान कृष्ण, जो अर्जुन के सारथी और मित्र थे, उनकी इस स्थिति को देखकर मुस्कुराए। यह एक साधारण मुस्कान नहीं थी, बल्कि एक ऐसी मुस्कान थी जो अर्जुन के मन के द्वंद्व को दूर करने की क्षमता रखती थी। कृष्ण के चेहरे पर एक विशेष प्रकार की शांति और करुणा झलक रही थी। वे जानते थे कि अर्जुन का यह विषाद और शोक उसके कर्तव्य पथ से भटकने का कारण बन रहा है।
कृष्ण ने अर्जुन से कहा, "हे पार्थ, तुम यह क्यों सोचते हो कि इस युद्ध का परिणाम दुखदाई होगा? यह जीवन अनित्य है और यह शरीर नाशवान है। आत्मा अमर है और यह युद्ध धर्म की स्थापना के लिए है।"
अर्जुन ने कहा, "हे केशव, मैं जानता हूँ कि आत्मा अमर है, लेकिन मैं अपने भाइयों और गुरुओं के रक्त से सना यह राज्य नहीं चाहता। मुझे इसमें कोई आनंद नहीं मिलेगा।"
भगवान कृष्ण ने गंभीरता से अर्जुन की बात सुनी और फिर बोले, "हे अर्जुन, तुम अपने कर्तव्य से विमुख हो रहे हो। यह तुम्हारा धर्म है कि तुम अधर्म के खिलाफ खड़े हो और सत्य की रक्षा करो। यह युद्ध केवल तुम्हारे लिए नहीं है, बल्कि पूरे संसार के लिए एक संदेश है।"
कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश देना प्रारंभ किया। उन्होंने उसे कर्म योग, भक्ति योग, और ज्ञान योग के बारे में बताया। उन्होंने अर्जुन को यह समझाया कि जीवन का असली उद्देश्य आत्मा की मुक्ति और भगवान की सेवा में है। उन्होंने कहा, "हे अर्जुन, तुम अपने कर्तव्य का पालन करो और फल की चिंता मत करो।"
भगवान कृष्ण की शिक्षाओं ने अर्जुन के मन का अंधकार दूर कर दिया। उन्हें अब स्पष्टता प्राप्त हुई और वे युद्ध के लिए तैयार हो गए। उन्होंने अपने धनुष को उठाया और युद्धभूमि की ओर अग्रसर हो गए, यह जानते हुए कि भगवान कृष्ण उनके साथ हैं और उनके मार्गदर्शक हैं।
कृष्ण की वह मुस्कान, जो उन्होंने अर्जुन के विषाद में डूबे होने पर दी थी, केवल एक मित्र की नहीं थी, बल्कि एक गुरु की थी जो अपने शिष्य को सही मार्ग दिखाने के लिए तत्पर था। यह मुस्कान संसार के लिए एक संदेश थी कि भगवान अपने भक्तों के लिए हमेशा उपस्थित हैं, चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
कृष्ण और अर्जुन के इस संवाद ने न केवल अर्जुन को प्रेरित किया, बल्कि यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन गया। भगवद्गीता का यह ज्ञान आज भी समस्त मानवता के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो जीवन के हर क्षेत्र में मार्गदर्शन प्रदान करती है।
भगवान कृष्ण की हंसी में कई अर्थ छिपे थे। सबसे पहले, कृष्ण को यह देखकर हंसी आई कि अर्जुन जो पहले युद्ध के लिए तत्पर थे, अब शोक में डूब गए हैं। दूसरी बात, अर्जुन ने यह कहा कि वह कृष्ण के शरणागत हैं और उनसे मार्गदर्शन चाहते हैं, परंतु बिना कोई उचित निर्देश प्राप्त किए उन्होंने स्वयं निर्णय ले लिया। यह विरोधाभास भगवान के लिए हास्य का कारण बना।
कृष्ण ने अर्जुन की स्थिति को समझते हुए उन्हें गुरु के रूप में मार्गदर्शन देने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी हंसी के माध्यम से अर्जुन को यह संकेत दिया कि शरणागत का अर्थ है संपूर्ण समर्पण, जहां किसी प्रकार का किंतु-परंतु नहीं होता। कृष्ण का यह उपदेश केवल अर्जुन के लिए नहीं, बल्कि समस्त मानवता के लिए था।
कृष्ण की हंसी ने अर्जुन के शोक को दूर करने का कार्य किया। वह हंसी एक मित्र की मुस्कुराहट थी, जो अपने प्रिय को गहरे दुख से बाहर निकालने का प्रयास कर रही थी। कृष्ण की हंसी ने न केवल अर्जुन को, बल्कि युद्धभूमि में उपस्थित सभी योद्धाओं को एक महत्वपूर्ण संदेश दिया।
कृष्ण की हंसी ने अर्जुन को यह भी सिखाया कि शरणागति का मार्ग ही वास्तविक ज्ञान का मार्ग है। जब हम भगवान की शरण में जाते हैं, तो हमें उनके निर्देशों का पालन संपूर्ण समर्पण के साथ करना चाहिए। यही सच्ची भक्ति और ज्ञान का मार्ग है।
कृष्ण की हंसी ने अर्जुन को युद्ध की वास्तविकता से अवगत कराया और उन्हें धर्म के मार्ग पर अग्रसर किया। यह कहानी हमें सिखाती है कि भगवान की शरणागति ही जीवन के सभी दुखों और द्वंद्वों का समाधान है। भगवान की मुस्कान में छिपा यह संदेश सभी जीवों के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश है।
कृष्ण की इस हंसी का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना कि तब था। यह हमें सिखाता है कि जीवन के संघर्षों में हमें धैर्य और समर्पण के साथ धर्म के मार्ग पर चलते रहना चाहिए। हरे कृष्ण!
प्रश्न 1:भगवान कृष्ण की हंसी का कारण क्या था?
उत्तर: भगवान कृष्ण की हंसी का कारण यह था कि अर्जुन ने पहले कहा था कि वह कृष्ण के शरणागत हैं और उनसे मार्गदर्शन चाहते हैं, लेकिन बाद में बिना कुछ कहे, अपना निर्णय सुना दिया कि वह युद्ध नहीं करेंगे। यह देखकर भगवान को हंसी आ गई क्योंकि अर्जुन का शरणागति का भाव अधूरा था।
प्रश्न 2: भगवान कृष्ण को अर्जुन की स्थिति पर हंसी क्यों आई?
उत्तर:भगवान कृष्ण को हंसी इसलिए आई क्योंकि अर्जुन ने पहले उन्हें गुरु के रूप में स्वीकार किया था और फिर भी अपने निर्णय स्वयं ले रहे थे कि " मैं युद्ध नहीं करूगाँ "। जो शरणागति के विपरीत था।
प्रश्न 3:भगवान कृष्ण की हंसी का गीता में क्या महत्व है?
उत्तर:भगवान कृष्ण की हंसी का गीता में यह महत्व है कि उन्होंने अर्जुन को दिखाया कि उनका शोक और संकोच अनावश्यक है, और उन्होंने उसे गीता के माध्यम से सच्चा ज्ञान प्रदान किया, जिससे अर्जुन का मोह दूर हुआ।
प्रश्न 4: कृष्ण की हंसी का संदेश क्या है?
उत्तर: कृष्ण की हंसी का संदेश है कि जीवन में शोक, संकोच या द्वंद्व को त्यागकर हमें गुरु के मार्गदर्शन में आगे बढ़ना चाहिए और सच्चे ज्ञान को आत्मसात करना चाहिए। इससे हम अपने जीवन के असली उद्देश्य को समझ सकते हैं।
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