भगवान या गुरू का अनुकरण (नकल) नहीं, अनुसरण करना चाहिए।

अपने गुरु या भगवान का अनुकरण करने के बजाय, सही तरीके से अनुसरण करने के महत्व को समझें। जीवन में सफल होने के लिए मार्गदर्शन पाएं।


#1. प्रस्तावना


भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में भगवान और गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीमद्भगवद्गीता एवं अन्य शास्त्रों में यह स्पष्ट किया गया है कि भगवान अथवा सद्गुरु का अंधानुकरण (नकल) नहीं करना चाहिए, बल्कि उनके उपदेशों और सिद्धांतों का अनुसरण करना चाहिए। यह मूलभूत भेद समझना आवश्यक है, क्योंकि नकल केवल बाह्य आचरण तक सीमित होती है, जबकि अनुसरण हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।


#2. अनुकरण और अनुसरण का अंतर


'अनुकरण' का अर्थ होता है किसी के कार्यों की नकल करना, जबकि 'अनुसरण' का अर्थ होता है उनके बताए गए मार्ग पर चलना। भगवान श्रीकृष्ण स्वयं गीता में इस विषय को स्पष्ट करते हैं:

"यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः। स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।" (भगवद्गीता 3.21)

अर्थात्, जो श्रेष्ठ व्यक्ति आचरण करता है, अन्य लोग उसी का अनुसरण करते हैं। इसलिए, महत्वपूर्ण यह नहीं है कि हम बाह्य रूप से किसी महान आत्मा की नकल करें, बल्कि यह है कि हम उनके दिखाए गए पथ का अनुसरण करें।

उदाहरण के लिए, भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था, जो एक दिव्य कृत्य था। हमें भगवान के आदेशों का पालन करना चाहिए, जैसे कि उनकी शरण में जाना और उन्हें पत्र, पुष्प, फल आदि अर्पित करना। शास्त्रों में वर्णित विधियों का पालन करके भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है।


#3. गुरु का सच्चा अनुसरण


गुरु का कार्य शिष्य को सही मार्ग दिखाना होता है। लेकिन कई बार शिष्य केवल गुरु के बाह्य आचरण की नकल करने लगते हैं, जिससे वे मार्ग से भटक जाते हैं। भगवद्गीता कहती है:

"तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया। उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।" (भगवद्गीता 4.34)

इसका अर्थ है कि ज्ञान प्राप्त करने के लिए विनम्रता से गुरु के पास जाना चाहिए, उनसे प्रश्न पूछने चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए। केवल गुरु की वेशभूषा या जीवनशैली अपनाने से कुछ नहीं होगा, बल्कि उनके द्वारा दिए गए उपदेशों को अपने जीवन में उतारना आवश्यक है।

धर्म और महापुरुषों का अनुसरण

धर्म के तत्व को समझने के लिए महापुरुषों का अनुसरण करना चाहिए। महाजन जो रास्ता बताते हैं, उसे स्वीकार करना चाहिए। महापुरुष शास्त्रों के माध्यम से सच्चे धर्म का ज्ञान प्राप्त करते हैं।

आचार्यों के आदेशों का पालन

आचार्यों के आदेशों का पालन करना चाहिए। जैसे कि गोस्वामी और प्रभुपाद ने जो बताया है, उसे मानना चाहिए। अनुसंधान में समय नष्ट करने के बजाय भक्तों की सेवा करें और उनके आदेशों का पालन करें।

तथाकथित गुरूओ से बचाव

आज के समाज में कई तथाकथित गुरु हैं जो छोटे-मोटे चमत्कार दिखाकर लोगों को आकर्षित करते हैं। इनसे सावधान रहना चाहिए। ऐसे व्यक्ति जो स्वयं को भगवान कहते हैं, उनसे पूछना चाहिए कि क्या वे भगवान के चमत्कार दिखा सकते हैं। ढोंगी गुरुओं से बचना आवश्यक है।


Register Gita Class
Register Free Gita Class


#4. भगवान का अनुसरण क्यों करें?


भगवान श्रीकृष्ण और अन्य अवतारों का जीवन एक मार्गदर्शन है। वे स्वयं भी धर्म की रक्षा के लिए अवतरित होते हैं:

"परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।" (भगवद्गीता 4.8)

भगवान हमें यह नहीं सिखाते कि हम उनके अलौकिक कार्यों की नकल करें, बल्कि वे हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।

भगवान की शरणागति और सर्वोत्तम उपासना

भगवान की शरण में जाना और उनकी उपासना करना सर्वोत्तम है। पद्मपुराण में बताया गया है कि भगवान विष्णु को प्रसन्न करना जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य है। उनका दास प्रसन्न होता है तो भगवान भी प्रसन्न होते हैं। इसलिए भगवान का दास बनना महत्वपूर्ण है।

भगवान की सेवा और तुलसी का महत्व

भगवान की सेवा करना और तुलसी की पूजा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। तुलसी का भगवान कृष्ण के साथ घनिष्ठ संबंध है। भगवान की सेवा करने से वह प्रसन्न होते हैं। तुलसी की पूजा से भगवान की कृपा प्राप्त की जा सकती है।


#5. अनुकरण के दुष्परिणाम


यदि कोई व्यक्ति बिना समझे केवल बाह्य रूप से किसी का अनुकरण करता है, तो वह गहरे आध्यात्मिक अर्थ को खो देता है।

  1. सतही आध्यात्मिकता – केवल वेशभूषा या जीवनशैली अपनाने से कोई आध्यात्मिक नहीं बनता। इसके लिए आंतरिक जागरूकता आवश्यक है।
  2. संदेह और भ्रम – जब व्यक्ति केवल अनुकरण करता है, तो वह वास्तविक आध्यात्मिक अनुभव से वंचित रह जाता है और भ्रमित हो सकता है।
  3. स्वयं की पहचान खो देना – भगवान और गुरु का अनुसरण करने का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानना। अनुकरण करने से व्यक्ति अपनी मौलिकता खो देता है।


#6. निष्कर्ष


भगवान तक पहुंचने के लिए दास भाव में रहना आवश्यक है। उनकी आज्ञा का पालन करके ही लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। मनचाही सफलता के लिए आचार्य का अनुसरण करना चाहिए और तर्क-वितर्क में नहीं उलझना चाहिए।

गीता और भागवत हमें सिखाते हैं कि भगवान और गुरु का अंधानुकरण नहीं, बल्कि अनुसरण करना चाहिए। हमें उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करना चाहिए, न कि केवल उनकी बाहरी गतिविधियों की नकल करनी चाहिए। ऐसा करने से ही हम सच्ची आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त कर सकते हैं।


#7. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ's)


भगवान या गुरु का अनुकरण क्यों नहीं करना चाहिए?

भगवान या गुरु का अनुकरण करने के बजाय उनके आदेशों का पालन करना चाहिए क्योंकि वे दिव्य शक्तियों के स्वामी होते हैं और उनके कार्य सामान्य मनुष्य के लिए सदैव उपयुक्त नहीं होते।

भगवान के आदेशों का पालन कैसे किया जा सकता है?


भगवान के आदेशों का पालन उनके द्वारा बताई गई विधियों से किया जा सकता है, जैसे कि जप, पूजा और उनके दिए गए शिक्षाओं का अनुसरण करना।

अनुसरण और अनुकरण में क्या अंतर है?


अनुसरण का अर्थ है किसी के बताए गए मार्ग पर चलना और उसके आदेशों का पालन करना, जबकि अनुकरण का अर्थ है किसी के कार्यों की नकल करना।

महापुरुषों द्वारा बताए गए मार्ग का महत्व क्या है?


महापुरुषों द्वारा बताए गए मार्ग का महत्व इसलिए है क्योंकि वे धर्म के गूढ़ तत्वों को समझते हैं और उनके मार्गदर्शन से ही सही दिशा और सफलता प्राप्त की जा सकती है।


~Follow Us~


Categories: : Article, Blog