शोक का कारण एवं निवारण - Bhagavad Gita 2.11

शोक और उसके निवारण के लिए भगवद्गीता के महत्वपूर्ण श्लोक का विश्लेषण पढ़ें। इस लेख में जानें शोक का अर्थ और इससे कैसे उबरें।


#1. प्रस्तावना


क्या आपने कभी सोचा है कि हमें किस विषय पर शोक करना चाहिए? हम अक्सर किसी व्यक्ति या वस्तु के प्रति आसक्त हो जाते हैं और उनके खोने पर शोक करते हैं। लेकिन शोक कब और क्यों करना चाहिए और शोक कैसे मिट सकता है, आइए जानते हैं।


श्रीभगवानुवाच
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्र्च भाषसे |
गतासूनगतासूंश्र्च नानुशोचन्ति पण्डिताः || ११ ||

श्री भगवान् ने कहा – तुम पाण्डित्यपूर्ण वचन कहते हुए उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक करने योग्य नहीं है | जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए, न ही मृत के लिए शोक करते हैं |


#2. शोक का मर्म


भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय के 11वें श्लोक में श्री भगवान कहते हैं कि विद्वान व्यक्ति न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं। भगवान अर्जुन को बताते हैं कि जो विद्वान होते हैं, वे शरीर और आत्मा के भेद को समझते हैं और किसी भी अवस्था में शोक नहीं करते। इस ज्ञान की कमी के कारण अर्जुन शोक कर रहा था, जबकि शरीर का विनाश निश्चित है और आत्मा अविनाशी है।


#3. संसार का दुःख


यह संसार दुखों का घर है और नष्ट होने वाला है। जन्म, मृत्यु, जरा, और व्याधि ये चार चीजें हैं जिनके प्रति हमें शोक करना चाहिए। श्रीमद भागवत के अनुसार, जब व्यक्ति का जन्म होता है, तो उसे गर्भ में अत्यधिक पीड़ा होती है। जन्म के बाद, त्रिगुण मायी माया में फंसकर व्यक्ति संसारिक बंधनों में जकड़ जाता है। इस चक्र से बाहर निकलने का मात्र उपाय भगवान श्रीकृष्ण की शरणागति है।


कथारूप (तत्व को समझने के दृष्टिकोण से)

यह कहानी उस काल की है जब अर्जुन, महाभारत के युद्ध के मध्य में खड़ा होकर शोक में डूब गया था। वह अपने परिवार और प्रियजनों के प्रति आसक्त होकर युद्धभूमि पर खड़ा था और यह सोच रहा था कि इस युद्ध का क्या परिणाम होगा। उसके मन में अनेक प्रकार के विचार आ रहे थे कि क्या उसे युद्ध करना चाहिए या अपने स्वजनों की रक्षा के लिए पीछे हट जाना चाहिए।

अर्जुन का मन द्वंद्व में था। वह अपने गुरुओं, भाइयों और अन्य रिश्तेदारों के प्रति मोह में फंसा हुआ था। वह सोचता था कि अगर वह युद्ध करता है तो उसे अपने ही स्वजनों की हत्या करनी पड़ेगी। इस विचार से वह अत्यंत शोकाकुल हो गया और उसने अपने धनुष को नीचे रख दिया। उसके मन में यह शंका थी कि धर्म का पालन कैसे होगा जब उसके अपने ही स्वजन इस युद्ध में मारे जाएंगे।

यह देख कर भगवान श्रीकृष्ण, जो अर्जुन के सारथी बने थे, उसे उपदेश देने लगे। उन्होंने कहा, "हे अर्जुन, तुम जो शोक कर रहे हो, वह शोक योग्य नहीं है। जो विद्वान होते हैं, वे न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं। आत्मा अमर है, वह कभी नष्ट नहीं होती। शरीर नश्वर है, उसका विनाश होना निश्चित है।"

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि जो वस्तु नष्ट होने वाली है, उसके लिए शोक करना व्यर्थ है। आत्मा अमर और अविनाशी है, इसलिए उसके लिए भी शोक करने का कोई कारण नहीं है। उन्होंने अर्जुन को बताया कि वह अपने कर्तव्य का पालन करे और शोक से मुक्त हो जाए।

श्रीकृष्ण ने कहा, "तुम पांडित्यपूर्ण बातें करते हो, लेकिन वास्तव में तुम विद्वान नहीं हो। विद्वान व्यक्ति वह है जो आत्मा और शरीर के भेद को समझता है और किसी भी परिस्थिति में शोक नहीं करता। इसलिए हे अर्जुन, अपने कर्तव्य का पालन करो और शोक मत करो।"

अर्जुन ने धीरे-धीरे श्रीकृष्ण की बातों को समझा और उसका मन स्थिर हुआ। उसने निर्णय लिया कि वह अपने कर्तव्य का पालन करेगा और युद्ध करेगा। उसके मन में अब कोई शोक नहीं था, क्योंकि वह जान गया था कि आत्मा अमर है और शरीर का विनाश होना तय है।

इस प्रकार, श्रीकृष्ण के उपदेश से अर्जुन ने शोक से मुक्त होकर अपने कर्तव्य का पालन किया। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में शोक से मुक्त होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए और आत्मा की अमरता को समझना चाहिए।


#4. शोक का सही अर्थ


भगवान कहते हैं कि हमें संसारिक वस्तुओं या व्यक्तियों के प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए। शोक का वास्तविक कारण कृष्ण प्राप्ति के लिए होना चाहिए। भक्तों को शोक करना चाहिए जब उनकी साधना में कोई विघ्न आए या जब कोई व्यक्ति कृष्ण भक्ति से विमुख हो जाए। रुक्मिणी जी और अर्जुन के उदाहरण बताते हैं कि कृष्ण प्राप्ति के लिए शोक करना उचित है।

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#5. आत्मा और शरीर का भेद


शरीर नाशवान है और आत्मा अविनाशी। इसलिए, न तो शरीर के लिए और न ही आत्मा के लिए शोक करना चाहिए। आत्मा का विनाश नहीं होता और शरीर का विनाश निश्चित है। इसलिए, जो विद्वान होते हैं, वे किसी भी परिस्थिति में शोक नहीं करते।


#6. निष्कर्ष


शोक का वास्तविक कारण और निवारण समझने के लिए हमें अपने जीवन में भगवान कृष्ण की शरणागति लेनी चाहिए। संसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्मा के वास्तविक स्वरूप को पहचानना ही शोक का निवारण है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान की भक्ति में लीन रहना चाहिए। हरे कृष्ण!


#7. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ's)


प्रश्न 1. शोक का सही कारण क्या है?
शोक का सही कारण यह है कि हम किसी व्यक्ति या वस्तु पर अत्यधिक आसक्त हो जाते हैं। जब वह वस्तु या व्यक्ति हमारी पहुँच से बाहर हो जाता है, तो हम शोक करते हैं। भगवद्गीता में बताया गया है कि हमें शरीर और आत्मा के वास्तविक स्वरूप को समझना चाहिए और शोक के योग्य क्या है, इसका ज्ञान होना चाहिए।

प्रश्न 2. शोक से कैसे मुक्त हो सकते हैं?
शोक से मुक्त होने के लिए भगवद्गीता का उपदेश है कि हमें भगवान की शरण में जाना चाहिए और समझना चाहिए कि आत्मा अविनाशी है। भगवान कृष्ण की शरणागति और भक्ति मार्ग अपनाकर हम शोक से मुक्ति पा सकते हैं।

प्रश्न 3. भगवद्गीता में शोक के विषय में क्या सिखाया गया है?
भगवद्गीता में सिखाया गया है कि विद्वान व्यक्ति न तो जीवित के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं। आत्मा अविनाशी है और शरीर नाशवान है, इसलिए शोक का कोई अर्थ नहीं है। हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भगवान में ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

प्रश्न 4. किस स्थिति में शोक करना सही है?
शोक करना सही है जब हम किसी व्यक्ति को भगवान की ओर बढ़ाने की दिशा में शोक कर रहे हों। जैसे भक्तगण अपने आत्मिक ज्ञान और भक्ति में कमी के लिए शोक करते हैं। यह शोक भगवद्प्राप्ति के लिए प्रेरित करता है। 

प्रश्न 5. क्यों हमें मृत व्यक्ति के लिए शोक नहीं करना चाहिए?
मृत व्यक्ति के लिए शोक नहीं करना चाहिए क्योंकि आत्मा अविनाशी है और शरीर का नाश निश्चित है। शोक करने से मृतात्मा को कष्ट होता है और उन्हें हमारे आँसू सहन करने पड़ते हैं। इसलिए हमें अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए पिंडदान और जलदान करना चाहिए।


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