सामान्य मनुष्य अज्ञान में क्यों होता है और इससे कैसे निकल सकता है?

अज्ञान एक सामान्य समस्या है जो कई लोगों को प्रभावित करती है। इस लेख में जानें कि अज्ञानता क्यों होती है और इससे कैसे बाहर निकलें!


#1. परिचय


मानव जीवन में अज्ञानता का प्रमुख कारण यह है कि हम अपनी इंद्रियों की तृप्ति में लगे रहते हैं और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को नहीं समझ पाते। यह स्थिति हमारे जीवन को भ्रमित और असंतुलित बनाती है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे हम इस अज्ञानता से बाहर निकल सकते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।


#2. अज्ञान की उत्पत्ति


श्रीमद्भागवतम् के अनुसार, जब ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया, तो सबसे पहले अज्ञान प्रकट हुआ। यह अज्ञान तमस, मोह, और मिश्र जैसे तत्वों के रूप में सामने आया। जब हम इस संसार में जन्म लेते हैं, तो हम अपने आप को और अपने परिवार को ही सब कुछ मानने लगते हैं। यह मोह हमें भौतिक सुखों के पीछे भटकाता है, जिससे हम वास्तविक सुख और शांति से दूर हो जाते हैं।


#3. चार्वाक का सिद्धांत


चार्वाक का नास्तिकवाद सिद्धांत कहता है कि जब शरीर मृत्यु के पश्चात नष्ट हो जाता है, तो हमें इस जीवन में ही सभी भौतिक सुखों का आनंद लेना चाहिए। यह सिद्धांत समाज में अराजकता और अज्ञानता का प्रमुख कारण है। समाज में अधिकांश लोग इसी विचारधारा का पालन करते हैं, जिससे उनकी चेतना दूषित होती जा रही है।

(कथारूप) तत्व को समझने के दृष्टिकोण से

किसी गाँव में एक समय की बात है। गाँव के लोग जीवन की विभिन्न समस्याओं से परेशान थे और उनके पास कोई समाधान नहीं था। वे संसार के भोग में लिप्त थे, अपने जीवन का असली मकसद भूल चुके थे। गाँव के अधिकतर लोग दिन-रात अपने कार्य में लगे रहते और माया के जाल में फंसते जा रहे थे। एक दिन गाँव में एक संत का आगमन हुआ। उनका नाम था प्रभात। लोग उनकी ओर आकर्षित हुए, क्योंकि उनके चेहरे पर एक अद्भुत शांति थी।

प्रभात ने गाँव के चौराहे पर एक सभा आयोजित की। सभी गाँववासी वहाँ एकत्रित हुए। उन्होंने अपनी बात इस प्रकार शुरू की, "प्रिय मित्रों, आप सभी संसार के रोग में नहीं, बल्कि भोग में ग्रस्त हैं। यह भोग ही आपके दुखों का कारण है।" लोग हैरान थे, क्योंकि यह बात उनके समझ में नहीं आ रही थी। उन्होंने कहा, "आप लोग मुझे पागल कह सकते हैं, क्योंकि मैं भोग से विरक्त हूँ। लेकिन असल में, पागल वे हैं जो अपने जीवन के असली मकसद को भूल गए हैं।"

प्रभात ने आगे बताया, "जब हम संसार में आते हैं, तो अविद्या के कारण अज्ञान में रहते हैं। यह अविद्या ब्रह्मा की छाया से उत्पन्न होती है। तमस, मोह और माया के जाल में फंसकर हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं। जब बच्चा जन्म लेता है, तो उसके माता-पिता उसे पुचकारते हैं, और वह समझता है कि यही उसका संसार है। इसी प्रकार, मोह और राग के कारण हम मामूली भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं।"

उन्होंने समझाया कि क्रोध और द्वेष भी इसी अज्ञान का परिणाम हैं। जब हमारी इच्छाएँ पूरी नहीं होतीं, तो हम क्रोधित हो जाते हैं। लेकिन यह सब अज्ञान के कारण ही होता है। उन्होंने कहा, "जीवन का परम अंत मृत्यु है, लेकिन हम अमरता की इच्छा में जीते रहते हैं। यह चार्वाक का सिद्धांत है, जो कहता है कि जब तक जियो, सुख से जियो। लेकिन यह सिद्धांत समाज को नष्ट कर रहा है।"

प्रभात ने यह भी बताया कि माया की शक्ति के कारण हम 'मैं' और 'मेरा' के जाल में फंसते हैं। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण के प्रभाव में हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं। सतोगुण में शांति, रजोगुण में काम और तमोगुण में क्रोध का महत्व है। लेकिन असली शांति तब मिलती है जब हम समझते हैं कि हम भगवान के दास हैं और भगवान ही सब कुछ हैं।

गाँववासी धीरे-धीरे प्रभात की बातों को समझने लगे। उन्होंने महसूस किया कि जीवन का असली उद्देश्य भगवान की सेवा में है। हर व्यक्ति ने यह प्रण लिया कि वे अपने जीवन को भगवान की सेवा में लगाएंगे और भोग से दूर रहेंगे।

गाँव में एक नई जागरूकता आई। लोग अपने कार्यों को भगवान की भक्ति समझकर करने लगे। धीरे-धीरे गाँव की स्थिति बदलने लगी। लोग आपस में प्रेम और भाईचारे से रहने लगे। भोग की जगह सेवा का भाव आया। गाँव में शांति और समृद्धि का माहौल बन गया। प्रभात के आशीर्वाद से लोगों ने अपने जीवन का असली मकसद समझ लिया।

इस प्रकार, प्रभात की शिक्षाओं ने पूरे गाँव को अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाया। लोगों ने समझ लिया कि असली शांति भगवान की सेवा में है और यही जीवन का असली उद्देश्य है।


#4. चेतना का संदूषण


हमारी चेतना का दूषित होना माया और 'मैं' और 'मेरा' की भावना से होता है। यह भावना तब उत्पन्न होती है जब हम भगवान से विमुख हो जाते हैं। सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण जैसे गुणों के प्रभाव से हमारी चेतना प्रभावित होती है। यह गुण हमें भ्रामक विचारों और क्रियाओं की ओर ले जाते हैं।


#5. मैं और मेरा की भ्रामक धारणा


'मैं' और 'मेरा' की भावना हमारे जीवन को भ्रमित करती है। सतोगुणी व्यक्ति अपने ज्ञान का अभिमान करता है, रजोगुणी व्यक्ति कामनाओं में लिप्त रहता है, और तमोगुणी व्यक्ति क्रोध को प्रधानता देता है। यह सभी भावना हमें वास्तविकता से दूर ले जाती हैं।


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#6. वास्तविक स्थिति


हमारी वास्तविक स्थिति यह है कि हम भगवान के दास हैं। जब हम भगवान को परम भोक्ता, परम मित्र, और परम नियंता मानेंगे, तभी हम अपनी वास्तविक स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं। हमें अपनी इंद्रियों और संसाधनों को भगवान की सेवा में लगाना चाहिए। यही हमारी वास्तविक स्थिति है और यही हमें अज्ञानता से मुक्त कर सकती है।


#7. निष्कर्ष


अज्ञान से बाहर निकलने का एकमात्र उपाय है भगवान की सेवा में अपने जीवन को समर्पित करना। जब हम अपनी इंद्रियों को भगवान के लिए उपयोग करते हैं, तो हम अपनी वास्तविक स्थिति को प्राप्त कर सकते हैं और जीवन के वास्तविक उद्देश्य को समझ सकते हैं। यही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।


#8. अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ's)


सामान्य मनुष्य अज्ञान में क्यों होता है?

अधिकांश मनुष्य अज्ञान में इसलिए होते हैं क्योंकि वे अपनी इन्द्रिय तृप्ति में लिप्त रहते हैं और जीवन के वास्तविक लक्ष्य को नहीं पहचान पाते। वे भौतिक सुखों के पीछे भागते हैं और अपनी वास्तविक चेतना से विमुख हो जाते हैं।

अज्ञान से कैसे निकला जा सकता है?

अज्ञान से निकलने का मार्ग यह है कि व्यक्ति अपनी मूल चेतना को समझे और भगवान का दास बनकर उनकी सेवा में अपने जीवन को समर्पित करे। सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण से ऊपर उठकर भगवान की प्रेमाभक्ति प्राप्त करना ही इसका समाधान है।

चार्वाक सिद्धांत क्या है और इसका प्रभाव क्या है?

चार्वाक सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति को जीवन में भोग करना चाहिए, भले ही इसके लिए ऋण लेना पड़े। यह सिद्धांत आत्मा, परमात्मा, स्वर्ग-नर्क को नकारता है और भौतिक सुखों की प्राथमिकता देता है। इस विचारधारा के कारण समाज में नैतिकता का पतन होता जा रहा है। इसलिए हमे ऐसे तथाकथित विचारधारा से बचना चाहिए जो वर्तमान जीवन को अंतिम जीवन मानते हैं और खाओं, पिओ, मौज करो के सिद्धांत को बढ़ावा देते हैं।

जीवन में मोह और आसक्ति कैसे उत्पन्न होती है?

जीवन में मोह और आसक्ति तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति अपने शरीर और सगे-संबंधियों के प्रति पहचान और लगाव विकसित करता है। यह स्थिति तमस, मोह, और महा मोह से उत्पन्न होती है जो व्यक्ति को भौतिक सुखों की ओर आकर्षित करती है।

हमारी वास्तविक स्थिति क्या होनी चाहिए?

हमारी वास्तविक स्थिति यह होनी चाहिए कि हम भगवान के दास हैं और हमें भगवान के लिए कार्य करना चाहिए। जो भी संसाधन और सुविधाएं हमें प्राप्त हैं, उन्हें भगवान की सेवा में लगाना चाहिए। यही हमारी चेतना की शुद्ध अवस्था है।


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